Also from archives (June 2011) ...
तेरी दुनिया में नेकी-ओ-इबादत नहीं रही
ईमान-ओ-सुकून से जीने की इजाज़त नहीं रही
फूलों से खुशबू तितलियों से रंग हुए जुदा
बच्चों के खेल में भी मासूमियत नहीं रही
मजबूरियों ने उठाई तो है आवाज़ दौर के खिलाफ
अंदाज़ में लेकिन वो बगावत नहीं रही
यूँ तो पत्थर शायद पिघल भी सकता था *
दिल में बेकरारी आवाज़ में शिद्द्त नहीं रही
दीवारों के शहर में कौन बोले कौन सुने
अब दिल की बात कहने की आदत नहीं रही
दोस्त मिलते हैं गले पर वो जोश कहाँ
लगता है अब उनको मेरी ज़रूरत नहीं रही
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* Reference from Dushyant Kumar's lines:
वो मुत्मइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूँ आवाज़ में असर के लिए
तेरी दुनिया में नेकी-ओ-इबादत नहीं रही
ईमान-ओ-सुकून से जीने की इजाज़त नहीं रही
फूलों से खुशबू तितलियों से रंग हुए जुदा
बच्चों के खेल में भी मासूमियत नहीं रही
मजबूरियों ने उठाई तो है आवाज़ दौर के खिलाफ
अंदाज़ में लेकिन वो बगावत नहीं रही
यूँ तो पत्थर शायद पिघल भी सकता था *
दिल में बेकरारी आवाज़ में शिद्द्त नहीं रही
दीवारों के शहर में कौन बोले कौन सुने
अब दिल की बात कहने की आदत नहीं रही
दोस्त मिलते हैं गले पर वो जोश कहाँ
लगता है अब उनको मेरी ज़रूरत नहीं रही
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* Reference from Dushyant Kumar's lines:
वो मुत्मइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूँ आवाज़ में असर के लिए
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